विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
हमारे बार में बीएसपी के रिटार्यड ला आफीसर श्री जी.एस.सिंह साहब प्रेक्टिस करते हैं। वे जितने कानून में कुशाग्र हैं उतने ही करेंट अफेयर और इतिहास की जानकारी रखते हैं। आज उन्होंनें सुभाष चंद्र बोस और डॉ.राजेन्द्र प्रसाद के संबंध में बहुत रोचक किस्सा बताया, हालांकि बहुत से लोग इन किस्सों को जानते होंगें किन्तु हम इसे आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। आज सुभाष चंद्र बोस के संबंध में -
सुभाष चंद्र बोस आईसीएस की परीक्षा में अव्वल नम्बर पर पास होकर साक्षात्कार दिलाने साक्षात्कार कमेटी के समक्ष पहुंचे। कमेटी में सभी अंग्रेज अधिकारी थे, उन्होंनें आपस में बात की, कि, इंडियन है इनके पास अक्ल कहां होती है, जैसे तैसे लिखित परीक्षा में पहले नम्बर पर आ गया है अब साक्षात्कार में यह टिक नहीं पायेगा और स्वयं अपना पिछड़ापन स्वीकारेगा।
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अंग्रेज चेयरमेन नें उपर तेज गति से चल रहे सिलिंग फेन की ओर उंगली दिखाते हुए पूछा कि बताओ इस पंखें में कितने डैनें हैं। उस समय बिजली बहुत कम जगह थी, सिलिंग फैन तो बिरले जगहों में थे तो अंग्रेज चेयरमेन सोंचते रहे कि यह कठिन सवाल है इस इंडियन को कहां पता कि सिलिंग फेन में कितने डैने हैं।
सुभाष चंद्र बोस नें गंभीरता के साथ प्रश्न को सुना, चयन समिति के सदस्यों की आंखों में आत्मविश्वास के साथ देखा और उठ कर पंखे का स्विच जहां था वहां गए और पंखा बंद कर दिया। कुछ पलों में पंखा बंद हो गया, अब सुभाष चंद्र बोस नें पंखें की ओर उंगली दिखाते हुए कहा कि सर तीन डैनें हैं।
चयन समिति एक दूसरे का मुह ताकते रह गए, इंडियन्स को मूर्ख और जाहिल समझने वाले सुभाष चंद्र बोस के प्रेजेंस आफ माइंड के कायल हो गए। कहा कि तुम्हारा चयन पहले नम्बर पर होता है तुम जहां चाहते हो वहां अपनी पदस्थापना ले सकते हो।
आगे सुभाष चंद्र बोस नें आईसीएस ज्वाईन नहीं किया आप सब इसके आगे की कथा जानते हैं।
- संजीव तिवारी
- संजीव तिवारी
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सुभद्रा कुमारी चौहान और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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